माँ और बेटी का रिश्ता
इतना नाज़ुक और इतना भावनापूर्ण है कि दोनों एक दुसरे की जान हैं।
Posted 1 year ago in Other.
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बेटी अगर दुखी तो इक माँ खून के आंसू बहाती है और इक माँ अगर दुखी हो तो बेटी का दिल रोता है .दोनो एक दूसरे के दर्द से इस तरह जुड़ी हुई हैं कि जब दोनो गले मिलती हैं तो घंटों एक दूसरे से अलग नही होती. भले ही सास कहे बेटा मैं तेरी माँ जैसी हूँ, लेकिन माँ जैसी होना और माँ होने में बहुत फर्क है। एक को दुसरे के दर्द से बहुत दर्द होता है और दूसरी यानि सास को दर्द दिखाई तो देगा लेकिन उसे उसका दर्द नहीं होगा जब तक उसकी अपनी खुद की बेटी को दर्द न हो। बेटियों को दो घरों की इज़ज़त को सम्भाल के रखना पड़ता है। वो हमेशा डरती रहती है की कहीं उसके ससुराल वाले आवेश में आकर उसके पीहर वालों को कुछ उल्टा सीधा न कह दें। लड़की वाले जब भी बेटी के घर जाते हैं तो खाली हाथ नहीं जाते, लेकिन ऐसी चीज़ लड़के वालों में बहुत कम दिखाई देती है। जब तक उनको देते रहो आपकी बेटी सुखी रहती है, जब थोडा सा हाथ खींच लो तो समझ लीजिये लड़की की शामत आ गई। बेटियां तो डर के मारे खुद पर हो रहे अत्याचार का अपनी माँ से ज़िक्र तक नहीं करती। लेकिन इक माँ को बेटी बताये या न बताये, वो फिर भी अपनी अंतरात्मा से जान जाती है कि उसकी बेटी बहुत दुखी है। जब घर में तीन चार बेटियां हों तो माँ बाप के कंधे वैसे ही झुक जाते हैं, लेकिन फिर भी अपनी हैसियत के हिसाब से सबके लिए कुछ न कुछ करते रहते है, भले ही उनको खुद रात को खाली पेट सोना पड़े। लडकियां हमेशा इज़ज़त बनाये रखने की कोशिश करती हैं और लड़के दूसरों की इज़ज़त की धज्जियां उड़ाने में एक मिनट नहीं लगाते चाहे कसूर खुद का ही क्यूँ न हो। बेटी अगर माँ से नहीं कहेगी तो फिर तो वो घुट घुट के मर जायेगी। भले ही ससुराल वाले बुरे हों, फिर भी माँ बेटी को ही समझाएगी , बेटी चिंता मत कर सब ठीक हो जायेगा।